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Friday, 19 December 2014

Masik Shivratri

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  2. 17 Mantra for the Masik Shivratri - YouTube

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    Masik Shivratri for Shiv Puja with 17 Mantra. ... Maha Shivaratri Mantra - Given by Dattatreya Siva Baba ...

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shivratri

MASIK SHIVRATRI

Mashik Shivratri

महाषिवरात्रि व्रत रात्रि को ही क्यों?
महाषिवरात्रि व्रत है परम कल्याणकारी
सुसंस्कारों जननी वेदगर्भा, जीवन-मृत्यु व ईष्वर की सत्ता का सतत् अनुभव व प्रत्यक्ष दर्षन कराने वाली भारतीय भूमि धन्य है। जो त्रिगुणात्मक (रज, सत, तम) षक्ति ईष्वर की आराधना के माध्यम से व्यक्ति को मनोवांछित फल दे उसे मोक्ष के योग्य बना देती है। ऐसा ही परम कल्याणकारी व्रत महाषिवरात्रि है जिसके विधि-पूर्वक करने से व्यक्ति के दुःख, पीड़ाओं का अंत होता है और उसे इच्छित फल पति, पत्नी, पुत्र, धन, सौभाग्य, समृद्धि व आरोग्यता प्राप्त होती है तथा वह जीवन के अंतिम लक्ष्य (मोक्ष) को प्राप्त करने के योग्य बन जाता है।
ज्योतिषीय दृष्टि से चतुदर्षी (14) अपने आप मे बड़ी ही महत्त्वपूर्ण है इस तिथि के देवता भगवान षिव हैं, जिसका योग 14त्र5 हुआ अर्थात् पूर्णा तिथि बनती है, साथ ही कालपुरूष की कुण्डली में पाँचवां भाव प्रेम भक्ति का माना गया है। अर्थात् इस व्रत को जो भी प्रेम भक्ति के साथ करता है उसके सभी वांछित भगवान षिव की कृपा से पूर्ण होते हैं।
इस व्रत को बाल, युवा, वुद्ध, स्त्री व पुरूष, भक्ति व निष्ठा के साथ कर सकते हैं। इस व्रत के विषय कई जनश्रुतियां तथा पुराणों मंे अनेकों प्रसंग हैं। जिसमे प्रमुख रूप से षिवलिंग के प्रकट होने तथा षिकारी व मृग परिवार का संवाद है। निर्धनता व क्षुधा से व्याकुल जीव हिंसा को अपने गले लगा चुके उस षिकारी को दैवयोग व सौभाग्य वष महाषिवरात्रि के दिन खाने को कुछ नहीं मिला तथा सायंकालीन वेला मे सरोवर के निकट बिल्वपत्र में चढ़ कर अपने आखेट की लालसा से रात्रि के चार पहर अर्थात् सुबह तक विल्वपत्र को तोड़कर अनजाने में नीचे गिराता रहा जो षिवलिंग मे चढ़ते गए। जिसके फलस्वरूप उसका हिंसक हृदय पवित्र हुआ और प्रत्येक पहर मे हाथ आए उस मृग परिवार को उनके वायदे के अनुसार छोड़ता रहा। किन्तु किए गए वायदे के अनुसार मृग परिवार उस षिकारी के सामने प्रस्तुत हुआ। परिणाम स्वरूप उसे व मृग परिवार को वांछित फल व मोक्ष प्राप्त हुए।
इस दिन व्रती को प्रातःकाल ही नित्यादि स्नानादि क्रियाओं से निवृत होकर भगवान षिव की पूजा, अर्चना विविध प्रकार से करना चाहिए। इस पूजा को किसी एक प्रकार से करना चाहिए। जैसे- पंचोपचार (पांच प्रकार) या फिर षोड़षोपचार (16 प्रकार से) या अष्टादषोपचार (18 प्रकार) से करना चाहिए। भगवान षिव से श्रद्धा व विष्वास पूर्वक “षुद्ध चित्त” से प्रार्थना करनी चाहिए, कि हे देवों के देव! हे महादेव! हे नीलकण्ठ! हे विष्वनाथ! आपको बारम्बार नमस्कार है। आप मुझे ऐसी कृपा षक्ति दो जिससे मै दिन के चार और रात्रि के चार पहरों मे आपकी अर्चना कर सकूं और मुझे क्षुधा, पिपासा, लोभ, मोह पीडि़त न करें, मेरी बुद्धि निर्मल हो मै जीवन को सद्कर्मों, सन्नमार्ग मे लगाते हुए इस धरा पर चिरस्मृति छोड़ आपकी परम कृपा प्राप्त करूं।
इस व्रत मे रात्रि जागरण व पूजन का बड़ा ही महत्त्व है इसलिए सांयकालीन स्नानादि से निवृत्त होकर यदि वैभव साथ देता हो तो वैदिक मंत्रों द्वारा प्रत्येक पहर में वैदिक ब्राह्मण समूह की सहायता से पूर्वा या उत्तराभिमुख होकर रूद्राभिषेक करवाना चाहिए। इसके पष्चात् सुगंधित पुष्प, गंध, चंदन, बिल्वपत्र, धतूरा, धूप-दीप, भांग, नैवेद्य आदि द्वारा रात्रि के चारों पहर में पूजा करनी चाहिए। किन्तु जो आर्थिक रूप से षिथिल हैं उन्हें भी श्रद्धा विष्वास पूर्वक किसी षिवालय में या फिर अपने ही घर मे उपरोक्त सामग्री द्वारा पार्थिव पूजन प्रत्येक पहर में करते हुए “ऊँ नमः षिवाय” का जप करना चाहिए। यदि आषक्त (किसी कारण या परेषानी) होने पर सम्पूर्ण रात्रि का पूजन न हो सके तो पहले पहर की पूजा अवष्य ही करनी चाहिए। इस प्रकार अंतिम पहर की पूजा के साथ ही समुचित ढंग व बड़े आदर के साथ प्रार्थना करते हुए सम्पन्न करें। तत्पष्चात् स्नान से निवृत्त होकर व्रत खोलना (पारण) करनी चाहिए।
इस व्रत मे त्रयोदषी विद्धा (युक्त) चतुर्दषी तिथि ली जाती है। पुराणांे के अनुसार भगवान षिव इस ब्रह्माण्ड के संहारक व तमोगुण से युक्त हैं जो महाप्रलय की बेला में तांडव नृत्य करते हुए अपने तीसरे नेत्र से ब्रह्माण्ड को भस्म कर देते हैं। अर्थात् जो काल के भी महाकाल हैं जहां पर सभी काल (समय) या मृत्यु ठहर जातें हैं, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की गति वहीं स्थित या समाप्त हो जाती है। रात्रि की प्रकृति भी तमोगुणी है, जिससे इस पर्व को रात्रि काल मे मनाया जाता है। भगवान षंकर का रूप जहां प्रलयकाल मे संहारक है वहीं भक्तों के लिए बड़ा ही भोला,कल्याणकारी व वरदायक भी है जिससे उन्हें भोले नाथ, दयालु व कृपालु भी कहा जाता है। अर्थात् महाषिवरात्रि में श्रद्धा और विष्वास के साथ अर्पित किया गया एक भी पत्र या पुष्प पापों को नष्ट कर पुण्य कर्मों को बढ़ा भाग्योदय करता है। जिससे इसे परम उत्साह, षक्ति व भक्ति का पर्व कहा जाता है। इसी प्रकार मास षिवरात्रि का व्रत भी है जो चैत्रादि सभी महीनों की कृष्ण चतुर्दषी को किया जाता है। इस व्रत में त्रयोदषी युक्त (विद्धा) अर्थात् रात्रि तक रहने वाली चतुर्दषी तिथि का बड़ा ही महत्त्व है। अतः त्रयोदषी व चतुदर्षी का योग बहुत षुभ व फलदायी माना जाता है। यादि आप मासिक षिवरात्रि व्रत रखना चाह रहें हैं तो इसका षुभारम्भ दीपावली या मार्गषीर्ष मास से करे तो अच्छा रहता है।
  1. Masik Shivaratri - drikPanchang.com

    www.drikpanchang.com › Vrat & Upavas
     
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  2. Maas Shivratri Calender 2014, Masik Shivratri 2014 - Indif.com

    www.indif.com/nri/panchang/2014/maas_shivratri_Calendar_14.asp
     
    Shivaratri is great festival of convergence of Shiva and Shakti. Maas Shivaratri orMasik Shivratri is celebrated in every month according to Hindu lunar calender.
  3. Shivaratri 2014 - Masik Shivaratri Vrat 2014 Dates

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  4. Masa Shivaratri 2014 | Masik Shivratri 2014 - Hindusphere

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  5. Masik Shivratri - Sant Shri Asharamji Ashram

    www.ashram.org/Sadhana/.../MasikShivratri.aspx
     
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    Masik Shivratri. ... Somvati Amavasya · View Your Registration · Maha Shivratri Akhand Jap · Satsang Prachaar · Publications · Rishi Prasad · RishiDarshan
  6. Masik Shivaratri in 2014: Awaken Lord Shiva On His ...

    www.astrocamp.com/masik-shivaratri-2014-dates.html
     
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1 comment:

  1. Vedic Astrology Centre18 December 2021 at 02:53

    Thanks for sharing this article.

    kundali match maker

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